होली के त्यौहार में धुलंडी के दिन लक्ष्मी माता की पूजा संपदा देवी के रूप में की जाती है और उनकी पूजा-अर्चना के साथ व्रत रखा जाता है। संपदा देवी का यह व्रत धन-धान्य देने तथा जीवन में शुभता लाने के लिए किया जाता है। इसी कारण पूजा-अर्चना और व्रत के साथ इस कथा का बहुत महत्व है।
सम्पदा देवी के पूजन की तैयारी किस प्रकार की जाती है?
सबसे पहले पूजा की थाली में सारी पूजा की सामग्री को सजा लिया जाता है। सम्पदा देवी का डोरा लेकर इसमें सोलह गांठे लगाई जाती है। यह डोरा सोलह तार के सूत का बना होता है और इसमें सोलह गांठे भी लगाने का विधान होता है। गांठे लगाने के बाद डोरे को हल्दी के रंग में रंग लिया जाता है। उसके बाद चौकी पर रोली-चावल के साथ कलश रखकर उस पर डोरे को बांध देते हैं। इसके बाद कथा कहीं और सुनी जाती है।कथा के बाद सम्पदा देवी का पूजन किया जाता है और फिर डोर को धारण किया जाता है। पूजा संपन्न करने के बाद सूर्य को अर्घ देते है।
चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को धन संपत्ति की देवी सम्पदा जी का डोरा बांधते हैं तथा वैशाख मास में कोई अच्छा दिन देखकर डोरा खोलते हैं। डोरा बांधते समय और डोरा खोलते समय व्रत रखकर कथा सुनते हैं और व्रत में पूजन करने के बाद दिन में एक बार हलवा पुरी का भोजन किया जाता है।

कथा: हमारे देश में एक राजा थे नल और उनकी पत्नी का नाम था दमयंती। एक बार चैत्र मास की प्रतिपदा को एक बुढ़िया, रानी दमयंती के पास आई। उसने अपने गले में पीला गांठ लगाकर डोरा बांध रखा था। रानी ने उससे डोरी के बारे में पूछा तो वह बोली, यह सम्पदा का डोर है, इसके पहनने से घर में सुख संपत्ति की वृद्धि होती है। रानी ने भी उससे एक डोरा लेकर अपने गले में बांध लिया। राजा नल ने रानी के गले में बंधे डोरे के विषय में पूछा तो रानी ने बुढ़िया द्वारा बताई सारी बातें बता दी।
राजा ने कहा, तुम्हें किस चीज की कमी है जो तुमने डोरा बांधा है। इतना कह कर रानी के मना करने पर भी राजा ने उस डोरे को तोड़कर फेंक दिया।
रात में राजा को सपने में एक स्त्री बोली, ‘मैं जा रही हूं तथा दूसरी स्त्री बोली मैं आ रही हूं। इस प्रकार राजा को दस-बारह दिनों तक रोज यही सपना आता रहा। वह उदास रहने लगा। रानी के पूछने पर राजा ने सपने की बात बता दी। रानी ने राजा से दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। राजा द्वारा उनसे पूछने पर पहली स्त्री बोली मैं लक्ष्मी हूं और दूसरी स्त्री ने अपना नाम दरिद्रता बताया।
दूसरे दिन राजा ने देखा कि उसका सब धन समाप्त हो गया है और उनके पास खाने तक को अन्न का एक दाना भी नहीं रहा। दुखी मन से राजा रानी जंगल में कंदमूल खाकर अपने दिन बिताने लगे। रास्ते में उनके 5 वर्ष के बेटे को भूख लगी तो रानी ने राजा से मालन के यहां से छाछ मांग कर लाने को कहा। राजा ने मालन से छाछ मांगी तो मालन ने कहा छाछ समाप्त हो गई है। आगे चलने पर एक सांप ने राजकुमार को डस लिया। रानी का इस वजह से रो-रो कर बुरा हाल हो गया। फिर राजा ने किसी तरह रानी की हिम्मत बड़ाई और आगे बढ़ते रहने को कहा।
आगे चलने पर राजा दो तीतर मार के लाया। रानी के दोनों तीतर भुने तो दोनों भुने हुए तीतर उड़ गए। राजा की धोती सुख रही थी तो धोती को हवा उड़ा ले गयी। तब रानी ने अपनी धोती फाड़ कर राजा को दी। वे भूखे प्यासे आगे बढ़े तो मार्ग में राजा के मित्र का घर पड़ा। मित्र ने दोनों को कमरे में ठहराया। वहां लोहे के औजार रखे तो वह धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के डर से वह रात में वहां से भाग गए।
आगे चलकर राजा की बहन का घर पड़ा। राजा की बहन ने उन्हें एक पुराने महल में ठहराया सोने के थाल में उन्हें खाना भेजा तो थाल मिट्टी में बदल गया। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थल को वहीं जमीन में गाड़कर वे वहां से भाग निकले। आगे चलने पर एक साहूकार का घर आया। साहूकार ने राजा के ठहरने की व्यवस्था पुरानी हवेली में कर दी। वहां पर एक कोठी पर एक हीरे का हार टंगा था। पास ही दीवार पर एक मोर का चित्र बना था। वह मर हार को निकलने लगा। यह देखकर वह वहां से भी चोरी के डर से भाग गए।
अब रानी की सलाह पर राजा जंगल में कुटिया बनाकर रहने की सोचने लगा। वे जंगल में एक सूखे बगीचे में जाकर रहने लगे। वह बगीचा हरा भरा हो गया। बाग का स्वामी यह देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। स्वामी ने उनसे पूछा तुम दोनों कौन हो? राजा बोला हम यात्री हैं। मजदूरी की खोज में आए हैं। स्वामी ने उन्हें अपने यहां पर नौकर रख लिया।
एक दिन बाग की स्वामिनी बैठी-बैठी कथा सुन रही थी और डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह सम्पदा का डोरा है। रानी ने भी कथा सुनकर डोरा ले लिया। राजा ने रानी से पूछा यह कैसा डोरा बांध है, रानी बोली ‘यह वही डोर है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था और उसके बाद हमें इतनी विपत्तियां झेलनी पड़ रही है’। सम्पदा देवी हम से नाराज है। रानी बोली, ‘यदि सम्पदा माता सच्ची है तो हमारे दिन फिर से लौट आएंगे’।
उसी रात को राजा को सपना आया। एक स्त्री कह रही है मैं जा रही हूं दूसरी स्त्री बोल रही है मैं आ रही हूं। राजा के पूछने पर पहली स्त्री ने अपना नाम दरिद्रता बताया और दूसरे ने अपना नाम लक्ष्मी बताया। राजा ने लक्ष्मी से पूछा अब तो नहीं जाओगी? लक्ष्मी बोली यदि तुम्हारी पत्नी सम्पदा का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी। यदि तुम डोरा तोड़ दोगे तो मैं चली जाऊंगी।
बाग की मालकिन किसी रानी को हार देने जाती थी। उस हार को दमयंती बनाती थी। रानी को वह हार बहुत पसंद आया। रानी के पूछने पर मालकिन ने बताया कि हमारे यहां एक दंपति नौकरी करते हैं, उसने ही बनाया है। रानी ने बाग की मालकिन से दोनों के नाम पूछने को कहा। घर आकर उसने उनसे नाम पूछे तो उसे पता चला कि वह नल-दमयंती है। बाग का मालिक उनसे क्षमा मांगने लगा तो राजा नल ने उससे कहा कि हमारे दिन खराब चल रहे हैं, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
अब दोनों अपने राजमहल की तरफ चलने लगे। रास्ते में साहूकार का घर आया। व साहूकार के यहां ठहरे। वहां साहूकार ने देखा दीवार पर बना मोर नौलखा का हार उगल रहा है। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिए आगे चलने पर बहन के घर पहुंचे। बहन ने राजा के अपने पुराने महल में ठहरने की व्यवस्था कर दी। राजा जे जंहा पर थाल गड़ा था वंहा पर खोदना शुरू किया तो उसे वहां पर हीरो से जड़ा हुआ सोने का थाल मिला। राजा ने बहन को बहुत सा धन भेंट स्वरूप दिया।
आगे चलकर मित्र के घर पहुंच कर उसी कमरे में ठहरा। उन्हें वहां मित्र के लोहे के औजार मिल गए। अगले दिन उन्होंने अपनी यात्रा शुरू की तो आगे चलने पर राजा को उसकी धोती एक वृक्ष पर मिल गई। नहा धोकर आगे बढ़ने पर राजकुमार जिसको सर्प ने डस लिया था वह खेलता हुआ मिल गया। महलों में पहुंचने पर रानी की सखियों ने मंगल गान गया और उनका स्वागत किया।यह सब सम्पदा जी का डोरा बांधने का ही फल था जो उनके बुरे दिन अच्छे दिनों में बदल गए।