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शिव तांडव स्तोत्रम् ॥ Shiv Tandav Stotram

Shiv Tandav Stotram रावण द्वारा लिखा गया है। निचे आप शिव तांडव स्तोत्रम् पड़ने के साथ-साथ इसका इतिहास, महत्व और लाभ भी पढ़ सकते है। शिव तांडव स्तोत्र जितना सुनने में अच्छा और आसान लगता है उससे कही ज्यादा कठिन इसे पढ़ना और इसके शब्दों का उच्चारण करना है। यहाँ पर शिव तांडव स्तोत्र के शब्दों को इस तरह से अलग अलग करके लिखा गया है जिससे इसको पहले के मुकाबले आसानी से पढ़ा जा सकता है।

सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ॥

श्रीगणेशाय नमः ॥

जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुंग-मालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्नि-नादवड्ड-मर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

Jaṭāṭavī-galaj-jala-pravāha-pāvita-sthale
Gale’valambya lambitāṁ bhujaṅga-tuṅga-mālikām |
Ḍamaḍḍamaḍḍamaḍḍam-an-nināda-vaḍḍamarvayaṁ
Chakāra chaṇḍa-tāṇḍavaṁ tanotu naḥ śivaḥ śivam || 1 ||

जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

Jaṭā-kaṭāha-sambhrama-bhraman-nilimpa-nirjharī
Vilola-vīci-vallarī-virājamāna-mūrdhani |
Dhagad-dhagad-dhagajjvala-llalāṭa-paṭṭa-pāvake
Kiśora-candra-śekhare ratiḥ pratikṣaṇaṁ mama || 2 ||

धराधरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोदमान मानसे ।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

Dharādharendra-nandinī-vilāsa-bandhu-bandhura
Sphurad-diganta-santati-pramoda-māna-mānase |
Kṛpā-kaṭākṣa-dhoraṇī-niruddha-durdharāpadi
Kvacid-digambare (kvacic-cidambare) mano vinodametu vastuni || 3 ||

जटा भुजंग पिंगल स्फुरत्फणा मणि प्रभा
कदम्ब कुङ्कुम द्रव प्रलिप्त दिग्वधू मुखे ।
मदान्ध सिंधुर स्फुरत् त्वगुत्तरीय मेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूत भर्तरि ॥४॥

Jaṭā-bhujaṅga-piṅgala-sphurat-phaṇā-maṇi-prabhā
Kadamba-kuṅkuma-drava-pralipta-dig-vadhū-mukhe |
Madāndha-sindhura-sphurat-tvag-uttarīya-medure
Mano vinoda-madbhutaṁ bibhartu bhūta-bhartari || 4 ||

सहस्र लोचन प्रभृति अशेष लेख शेखर
प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः ।
भुजंग राज मालया निबद्ध जाट जूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धु शेखरः ॥५॥

Sahasra-locana-prabhṛtya-śeṣa-lekha-śekhara
Prasūna-dhūli-dhoraṇī vidhūsara-aṅghri-pīṭha-bhūḥ |
Bhujaṅga-rāja-mālayā nibaddha-jāṭa-jūṭaka
Śriyai cirāya jāyatāṁ cakorabandhu-śekharaḥ || 5 ||

ललाट चत्वर ज्वलद् धनञ्जय स्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्च सायकं नमन्निलिम्प नायकम् ।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महाकपाली सम्पदेषिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

Lalāṭa-chatvara-jvalad-dhanañjaya-sphuliṅga-bhā
Nipīta-pañcasāyakaṁ namannilimpanāyakam |
Sudhā-mayūkha-lekhayā virājamāna-śekharaṁ
Mahākāpāli-sampade śiro-jaṭālamastu naḥ || 6 ||

कराल भाल पट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जय आहुतीकृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

Karāla-bhāla-paṭṭikā-dhagad-dhagad-dhagajjvala
Dhanañjayāhutīkṛta-pracaṇḍa-pañcasāyake |
Dharādhara-indra-nandinī-kucāgra-chitra-patraka
Prakalpanaika-śilpini trilochane ratirmama || 7 ||

नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धर स्फुरत्
कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

Navīna-megha-maṇḍalī-niruddha-durdhara-sphurat
Kuhū-niśīthi-nītamaḥ prabandha-baddha-kandharaḥ |
Nilimpa-nirjharī-dharas-tanotu kṛtti-sindhuraḥ
Kalānidhāna-bandhuraḥ śriyaṁ jagaddhuraṁdharaḥ || 8 ||

प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा
वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

Praphulla-nīla-paṅkaja-prapañcha-kālima-prabhā
Valambi-kaṇṭha-kandalī-ruci-prabaddha-kandharam |
Smarachchhidaṁ purachchhidaṁ bhavachchhidaṁ makhachchhidaṁ
Gajachchidāṁdhakachchhidaṁ tamantakachchhidaṁ bhaje || 9 ||

अगर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

Agarva sarvamaṅgalā-kalā-kadamba-mañjarī
Rasa-prabhāva-mādhurī vijṛmbhaṇā-madhuvratam |
Smarāntakaṁ purāntakaṁ bhavāntakaṁ makhāntakaṁ
Gajāntakāndhakāntakaṁ tamantakāntakaṁ bhaje || 10 ||

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंग माश्वस
द्विनिर्गमत्क्रम स्फुरत्कराल भाल हव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

Jayatvad-abhravibhrama-bhramadbhujaṅgamaśvasa
Dvinirgamat-krama-sphurat-karāla-bhāla-havyavāṭ |
Dhimiddhimiddhi-midhvanan-mṛdaṅga-tuṅga-maṅgala
Dhvanikramapravartita pracaṇḍa-tāṇḍavaḥ śivaḥ || 11 ||

दृषद्विचित्र तल्पयोर्भुजंग मौक्तिक स्रजोर्
गरिष्ठ रत्न लोष्टयोः सुहृद्विपक्ष पक्षयोः ।
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजा महीमहेन्द्रयोः
समं प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

Dṛṣad-vichitra-talpayoḥ bhujaṅgamauktika-srajor
Gariṣṭha-ratna-loṣṭhayoḥ suhṛd-vipakṣa-pakṣayoḥ |
Tṛṇāravinda-cakṣuṣoḥ prajā-mahīmahendrayoḥ
Samaṁ pravṛttikaḥ kadā sadāśivaṁ bhajāmyaham || 12 ||

कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थ मञ्जलिं वहन् ।
विमुक्त लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
शिवेति मंत्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

Kadā nilimpa-nirjharī-nikuñja-kotare vasan
Vimukta-durmatiḥ sadā śiraḥ stham-añjaliṁ vahan |
Vimukta-lola-lochano lalāma-bhāla-lagnakaḥ
Śiveti mantramuccaran kadā sukhī bhavāmyaham || 13 ||

निलिम्प नाथ नागरी कदम्ब मौल मल्लिका
निगुम्फ निर्भक्षरन्म धूष्णिका मनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनीं महा निशं
परिश्रय परं पदं तदङ्ग जात्विषां चयः ॥१४॥

Nilimpa-nātha-nāgarī-kadamba-mauli-mallikā
Nigumphaniḥ-bhakṣaran-madhūṣṇikā-manoharaḥ |
Tanotu no manomudaṁ vinodinīṁ mahāniśaṁ
Pariśraya-paraṁ padaṁ tadaṅgajatviṣāṁ chayaḥ || 14 ||

प्रचण्ड वाडवानल प्रभा शुभ प्रचारणी
महाष्ट सिद्धि कामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह कालिक ध्वनिः
शिवेति मंत्र भूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

Pracaṇḍa-vāḍavā-nala-prabhā-śubha-prachāraṇī
Mahāṣṭa-siddhi-kāminī janāvahūta-jalpanā |
Vimukta-vāmalochano vivāha-kālika-dhvaniḥ
Śiveti mantra-bhūṣago jagajjayāya jāyatām || 15 ||

इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति संततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

Imaṁ hi nityam-evam-uktam-uttamottamaṁ stavaṁ
Paṭhan-smaran-bruvan naro viśuddhim-eti saṁtatam |
Hare gurau subhaktim-āśu yāti nānyathā gatiṁ
Vimohanaṁ hi dehināṁ suśaṅkarasya cintanam || 16 ||

पूजावसान समये दशवक्त्र गीतं
यः शम्भु पूजन परं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

Pūjā-vasāna-samaye daśa-vaktra-gītaṁ
Yaḥ śambhu-pūjana-paraṁ paṭhati pradoṣe |
Tasya sthirāṁ ratha-gajendra-turaṅga-yuktāṁ
Lakṣmīṁ sadaiva sumukhiṁ pradadāti śambhuḥ || 17 ||

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम्

Iti Śrīrāvaṇa kṛtam
Śiva Tāṇḍava Stotram Sampūrṇam

Shiv 3

Shiv Tandav Stotram: इतिहास, महत्व और लाभ

शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अद्भुत और प्रभावशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव के उग्र, शक्तिशाली और तांडव रूप का वर्णन करता है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में शिव की महिमा का गान है, जो शिवभक्तों को उनके अद्वितीय स्वरूप से परिचित कराता है। इस लेख में हम शिव तांडव स्तोत्र के इतिहास, इसके महत्व और इसके नियमित जाप से मिलने वाले लाभों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

शिव तांडव स्तोत्र का इतिहास

शिव तांडव स्तोत्र की रचना लंकापति रावण द्वारा की गई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब रावण कैलाश पर्वत पर गया, तो उसने अपने बल का प्रदर्शन करने के लिए पूरे पर्वत को उठा लिया। यह देखकर भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया, जिससे रावण उसके नीचे दब गया और बाहर निकलने में असमर्थ हो गया। तब, रावण ने अपनी भुजाओं से शिव की स्तुति करते हुए अद्भुत काव्य का सृजन किया, जिसे आज हम शिव तांडव स्तोत्र के रूप में जानते हैं। रावण की इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया और उसका घमंड तोड़ते हुए उसे ज्ञान प्रदान किया।

शिव तांडव स्तोत्र का महत्व

शिव तांडव स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन करता है और उनके तांडव नृत्य का दृश्य प्रस्तुत करता है। तांडव नृत्य दो रूपों में प्रसिद्ध है:

  1. रौद्र तांडव: यह नृत्य शिव के विनाशकारी स्वरूप को दर्शाता है, जब वह ब्रह्मांड की नकारात्मक शक्तियों का संहार करते हैं।
  2. आनंद तांडव: यह नृत्य शिव के सौम्य रूप को दर्शाता है, जब वह सृष्टि की रचना और संतुलन बनाए रखने के लिए नृत्य करते हैं।

इस स्तोत्र में शिव के मस्तक पर विराजमान गंगा, उनके शरीर पर लिपटे सर्प, उनके भयंकर जटाजूट, और उनके उग्र रूप का सुंदर वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र हमें यह भी सिखाता है कि शिव संहारक होने के साथ-साथ करुणा और प्रेम के सागर भी हैं।

ध्वनि तरंगों का प्रभाव

इस स्तोत्र के उच्चारण से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसके मंत्रोच्चारण से मस्तिष्क में बीटा और थीटा वेव्स सक्रिय होती हैं, जो ध्यान और मानसिक शांति में सहायक होती हैं। साथ ही योग करते समय इसके उच्चारण से एकाग्रता बढ़ती है, जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक तो होता ही है। साथ ही शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का ऐसा प्रवाह होता है जो किसी भी मनुष्य को नकारातमक ऊर्जा से दूर रखता है और आस पास की नकारातमक शक्तियों से भी बचाता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से कई आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

1. मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागृति

इस स्तोत्र का जाप करने से मन शांत होता है और व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह ध्यान और साधना में सहायक होता है, जिससे व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से प्रगति कर सकता है।

2. साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि

शिव तांडव स्तोत्र शिव की अपार शक्ति का बखान करता है, जिससे पाठ करने वाले के भीतर भी आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है। यह भय और नकारात्मक विचारों को समाप्त करने में मदद करता है।

3. नकारात्मक शक्तियों से रक्षा

इस स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर, तंत्र-मंत्र और किसी भी प्रकार की दुष्प्रभावी शक्तियों से बचा रहता है। इसे करने से घर और परिवार में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

4. स्वास्थ्य में सुधार

शिव तांडव स्तोत्र के उच्चारण से सकारात्मक तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मानसिक तनाव को दूर करती हैं और शरीर को ऊर्जावान बनाए रखती हैं। यह रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक हो सकता है।

5. आकस्मिक संकटों से मुक्ति

यदि किसी व्यक्ति को बार-बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा हो, तो शिव तांडव स्तोत्र का नित्य पाठ करने से संकटों से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति व समृद्धि आती है।

6. कर्म और भाग्य में सुधार

यह स्तोत्र शिव कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन है। यह न केवल व्यक्ति के कर्मों को सुधारता है, बल्कि भाग्य को भी प्रबल बनाता है।

7. सफलता और ऐश्वर्य प्राप्ति

शिव तांडव स्तोत्र को शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति इसे श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ता है, उसे जीवन में सफलता और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने की विधि

  1. प्रातः काल या संध्या के समय शिवलिंग के सामने बैठकर या किसी शांत स्थान पर बैठकर इस स्तोत्र का जाप करें।
  2. शुद्धता बनाए रखें और श्रद्धा भाव से इसका पाठ करें।
  3. यदि संभव हो तो रुद्राक्ष की माला से शिव तांडव स्तोत्र का 11 बार जाप करें।
  4. इसका पाठ करने के बाद भगवान शिव को जल और बेलपत्र अर्पित करें।
  5. सोमवार और महाशिवरात्रि के दिन विशेष रूप से इसका पाठ करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि यह शक्ति, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम है। यह न केवल शिव की महिमा का बखान करता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि शिव साधना और तपस्या से जीवन को कैसे ऊर्जावान और सफल बनाया जा सकता है।

इसका नियमित जाप करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति होती है। यदि इसे सच्ची श्रद्धा और भक्ति से पढ़ा जाए, तो यह व्यक्ति के जीवन में अपार सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

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